टाइफाइड बुखार की होम्योपैथिक दवा
टाइफाइड बुखार एक वैक्टीरिया के कारण होने वाला रोग है।उस टाइफाइड वैक्टीरिया नाम साल्मोनेला टाइफी ( Salmonella typhi) है।
टाइफाइड बुखार का हिंदी नाम मोतीझरा,आंत्र ज्वर या मियादी बुखार है।यदि इस बुखार का सही समय पर इलाज न किया जाय तो यह जानलेवा भी हो सकता है।आज के इस लेख में आप जानेंगे टाइफाइड बुखार की होमियोपैथिक दवा के बारे में विस्तार से।
टाइफाइड एक विश्व व्यापी रोग है जो पूरी दुनिया में पाया जाता है।यह रोग ज्यादातर विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देशों में ज्यादा पाया जाता है।
अगर भारत देश की बात की जाय तो यहाँ भी यह एक प्रमुख संक्रामक बीमारी के रूप में पांव पसार के बैठा है।यह रोग ज्यादातर 10 से 30 वर्ष के आयु के लोगों में ज्यादा पाया जाता है।
एक आंकड़े के अनुसार लगभग 2 से 5 करोड़ लोग इस बीमारी से हर साल प्रभावित होते हैं।
टाइफाइड बुखार के लक्षण /टाइफाइड बुखार की पहचान
यदि किसी व्यक्ति को टाइफाइड बुखार होता है तो उसके अंदर निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकता है।
•प्रारम्भिक अवस्था में टाइफाइड के रोगी को 103℃ से 104 ℃ तक बुखार आता है।यह बुखार दोपहर बाद बढ़ जाता है।
•बुखार पहले सप्ताह में प्रतिदिन बढ़ता जाता है और दूसरे सप्ताह में बुखार जस का तस बना रहता है।
•तीसरे सप्ताह में बुखार धीरे धीरे कम होने लगता है।
•रोगी को बहुत तेज सिर दर्द होता है।
•भूख बिल्कुल नहीं लगती है।
•रोगी को बहुत ही सख्त कब्ज (constipation) रहता है और कभी कभी पतला दस्त भी आता है।
•रोगी के शरीर पर गुलाबी रंग के चकत्ते दिखाई देने लगते हैं।
•रोगी के शरीर में इतना दर्द होता है कि मानो किसी ने शरीर को कुचल दिया है।
•बुखार रहने की स्थिति में रोगी को जाड़ा लगता है।
•पेट में दर्द होता है।
• बुखार तेज होने की स्थिति में रोगी को उल्टी भी हो सकती है।
टाइफाइड के गम्भीर लक्षण
निम्नलिखित लक्षण दिखाई देने पर तुरंत रोगी को नजदीक के किसी अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए।
• बुखार का हर बार अपने निश्चित समय से एक या दो घण्टे पहले आना, यह टाइफाइड का बहुत ही गम्भीर लक्षण है।
• पखाना के साथ खून आना।
• रोगी का भूल बकना।
टाइफाइड बुखार होने के कारण
टाइफाइड बुखार आने का मुख्य कारण साल्मोनेला टाइफी जीवाणु है।यह वैक्टीरिया जब किसी रोगग्रस्त व्यक्ति के मल, मूत्र से निकल कर वातावरण में मिल जाता है, और उस वातावरण में उत्तपन्न फल और सब्जियों जैसे खाद्य पदार्थ को कोई स्वस्थ मनुष्य ग्रहण कर लेता है तब यह साल्मोनेला टाइफी जीवाणु उस स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पहुँच जाता है।और उस व्यक्ति में टाइफाइड के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
टाइफाइड बुखार की होम्योपैथिक दवा
जेल्सीमियम (Gelsemium)
इस दवा का प्रयोग तब किया जाता है जब रोगी को टाइफाइड रोग का निर्धारण न हुआ हो।टाइफाइड रोग निर्धारित हो जाने पर यह दवा उतना फायदा नहीं करती है।
क्योंकि इस दवा का प्रभाव बहुत कम समय के लिए होता है।इस दवा में रोगी चुपचाप पड़ा रहता है। Gelsemium रोगी को इतनी अधिक कमजोरी महसूस होती है कि वह बिल्कुल हिलना डुलना नहीं चाहता है।
रोगी के पूरे शरीर में दर्द होता है, रोगी में तीसरे पहर बुखार की वृद्धि होती है।रोगी को कब्ज बना रहता है, सिर में रक्त की अधिकता के कारण जोर का सिर दर्द होता है।
इस दवा के बुखार में प्यास नहीं रहती है।रोगी के पूरे शरीर में कम्पन होती है लेकिन उसे जाड़ा बिल्कुल नहीं लगता है।
यूपेटोरियम परफोलियेटम (Eupatorium Perfoliatum)
बुखार में इस दवा का प्रयोग तब किया जाता है जब रोगी के शरीर में बुखार के साथ बहुत तेज दर्द हो,ऐसा दर्द जैसे किसी ने हड्डियों को कुचल दिया हो, तब इस दवा के प्रयोग से तुरन्त लाभ मिलता है।
इसमें रोगी को सुबह 7 बजे से 9 बजे के भीतर जाड़ा शुरू होता है।रोगी को जाड़ा शुरू होने के पहले और जाड़ा के समय बहुत तेज प्यास रहती है।जाड़ा पीठ से शुरू होकर पूरे शरीर में फैल जाता है।
बैप्टीशिया टिनक्टोरिया (Baptisia tinctoria)
यह दवा टाइफाइड रोग के आरम्भ से अंत तक के सभी लक्षणों में एक समान रूप से काम करती है।इसमें रोगी सभी कामों में उदासीनता प्रकट करता है।
रोगी का किसी काम में मन नहीं लगता है।रोगी की सोचने- समझने की क्षमता कम हो जाती है।रोगी किसी सवाल का ठीक-ठीक जबाब नहीं दे सकता है,जबाब देते देते सो जाता है।
रोगी जिस करवट सोता है उसी करवट कुचल जाने जैसा दर्द होने लगता है।रोगी कड़ी चीजों को नहीं निगल सकता है।रोगी को बुखार के समय या बाद में सुनने की शक्ति कम हो जाती है।
बदबूदार पखाना अनजान में निकल जाता है।कभी पतले दस्त कभी कब्ज आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।
ब्रायोनिआ एल्बा (Bryonia alba)
यह दवा टाइफाइड के उन लक्षणों में प्रयोग की जाती है जब रोगी को टाइफाइड के लक्षण बहुत धीरे धीरे प्रकट हो,रोगी को कब्ज हो उसके साथ बहुत तेज प्यास लगती हो।
रोगी एकदम चुपचाप पड़ा रहना चाहता है।रोगी सोचता है कि मैं घर से बहुत दूर हूँ, कहता है कि मुझे घर ले चलो।ऐसे लक्षणों में टाइफाइड बुखार की होमियोपैथिक दवा ब्रायोनिया एल्बा है।
आर्सेनिकम एल्बम (Arsenicum album)
टाइफाइड में यह दवा तब प्रयोग किया जाता है जब रोगी की शक्ति बहुत तेजी से क्षीण हो लगती है।रोगी जरा सी मेहनत करने से हाँफने लगता है।
रोगी बहुत छटपटाता है, वह अपना हाथ पैर हिलाता है और जगह बदलने की कोशिश करता रहता है, लेकिन उसे किसी भी स्थिति में चैन नहीं मिलता है।रोगी की जीभ सूखी रहती है,और बार बार पानी पीने की इच्छा व्यक्त करता है।
रोगी का कष्ट रात 1 बजे या दिन के एक बजे बढ़ता है।इस प्रकार के लक्षण रहने पर आर्सेनिकम एल्बम ही टाइफाइड की होमियोपैथिक दवा है।
रस टोक्सिकोडेन्ड्रन (Rhus toxicodendron)
टाइफाइड में इस दवा का प्रयोग तब किया जाता है, जब रोगी को टाइफाइड के लक्षण शुरू होते ही पतले दस्त आने लगता है।
रोगी एकदम बेचैन हो जाता है, इधर-उधर करवट बदलने से उसे राहत मिलती है।इस प्रकार के लक्षण में रस टॉक्स टाइफाइड रोग की होमियोपैथिक दवा है।
फॉस्फोरिकम एसिडम 200(Phosphoricum acidum 200)
एसिड फास टाइफाइड की सबसे अच्छी औषधियों में से एक है।इस दवा का प्रयोग तब किया जाता है, जब रोग के शुरुआत से रोगी की शारिरिक एवं मानसिक शक्तियों का हास् होने लगता है,शक्तिहीनता धीरे धीरे बढ़ती चली जाती है।
रोगी बेहोसी की हालत में पड़ा रहता है।उसके आस-पास जो कुछ भी हो रहा होता है उसके प्रति अनभिज्ञ रहता है।लेकिन जब उसे जगाया जाय तब वह एकदम सावधान हो जाता है।
रोगी का पेट ढोल की तरह फूल जाता है, रोगी एकटक ताकता रहता है मानो वह स्थिति को समझने का प्रयास कर रहा है।रोगी की जीभ सूखी और ओठ काले,मसूड़ो से खून आता है।
रोगी का जबड़ा ऐसे लटक पड़ता है, मानो कमजोरी और शिथिलता से रोगी की जान निकल जायेगी।इस प्रकार के टाइफाइड के लक्षण में एसिड फास 200 फायदा करती है।
टाइफोयेडिनम 200 (Typhoidinum 200)
टाइफोयेडिनम 200 एक नोसोड है जो टाइफाइड वैक्टीरिया के विष से बनायी जाती है।
टाइफाइड रोग के शुरुआत में इस दवा का प्रयोग करने से टाइफाइड रोग बढ़ने नहीं पाता है।
अर्निका (Arnica Montana)
टाइफाइड में इस दवा का प्रयोग तब किया जाता है जब रोगी के शरीर में बहुत दर्द रहता है,रोगी बेहोसी में पड़ा रहता है, बहुत बुलाने पर एक-दो बात का जबाब देकर कर फिर बेहोसी की हालत में हो जाता है।
रोगी को अनजान में पखाना,पेशाब हो जाता है, रोगी अज्ञान भाव से पड़ा रहता है, रोगी को श्वास लेने में गले से घड़घड़ाहट की आवाज आती है।रोगी हर समय टकटकी लगाकर देखता रहता है।
रोगी को दस्त के साथ खून आता है।इस प्रकार के लक्षण रहने पर अर्निका ही टाइफाइड की होमियोपैथिक दवा है।
म्यूरिएटिक एसिड (Muriatic Acid)
टाइफाइड में इस दवा का प्रयोग तब किया जाता है, जब रोगी को शारिरिक कमजोरी से पहले जिस्मानी कमजोरीआये,कमजोरी से रोगी के जबड़े झूल जाएं और रोगी बिस्तर पर पैताने की ओर सरक जाता है।
इसका रोगी किसी से बात नहीं करना चाहता है।जीभ खुश्क और सुन्न हो जाती है।पेशाब करते समय अनजान में बदबूदार पखाना निकल जाता है।
मुँह के भीतर छाले पड़ जाते हैं।रोगी को बेहद कमजोरी रहती।मांस खाने या मांस के बारे में ख्याल करने से रोगी को घृणा होती है।